अगर शरीर में दिखें ये संकेत तो व्रत रखना कर दें तुरंत बंद

अगर शरीर में दिखें ये संकेत तो व्रत रखना कर दें तुरंत बंद

रोहित पाल

नवरात्र आरंभ हो चुके हैं और लोगों ने मां दुर्गा की अराधना के साथ व्रत रखना भी शुरू कर दिया है। व्रत केवल मां की आराधना का एक जरिया भर नहीं है बल्कि यह हमारे शरीर के विषैले तत्‍वों को बाहर निकालने का एक जरिया भी है। इसलिए त‍करीबन सभी च‍िकित्‍सा पद्धतियों में इसे अहम स्‍थान दिया गया है। आज हम बात करेंगे आयुर्वेद में व्रत के महत्‍व की।

आयुर्वेद के अनुसार व्रत रखना शरीर के लिए बहुत ही लाभदायक होता है क्योंकि शरीर में ऐसे बहुत सारे विषाक्त पदार्थ पाए जाते हैं जो व्रत रखने से खत्म हो जाते हैं। आयुर्वेद में बाताया गया है कि व्रत के कई स्वास्थ्य लाभ होते हैं जैसे कि गैस की समस्या खत्म हो जाती है इसके आलावा व्रत शरीर के कई रोगों को खत्म करता है। आयुर्वेद की मानें तो हर व्यक्ति को व्रत रखना चाहिए। अगर हो सके तो लगातार व्रत रखने की बजाय उसे सप्ताह व दो सप्ताह में 2-3 दिन व्रत रखना चाहिए। आयुर्वेद में इसके बारे में भी विस्‍तार से वर्णन किया गया है।

देश के जाने माने आयुर्वेदाचार्य वैद्य अच्‍युत कुमार त्रिपाठी के अनुसार आयुर्वेद में यह भी बाताया गया है कि व्रत के दौरान क्या खाना चाहिए जिससे आपका शरीर उर्जावान रहे, किस प्रकार का आहार लें जिससे आप व्रत रखने के बाद भी स्वस्थ रहें और अगर आप स्वस्थ नही हैं तो आपको कितने दिन का व्रत रखना चाहिए। आज हम इस लेख में यही बाताएंंगे कि अस्वस्थ होने पर व्रत कैसे और कितने दिन का रखें।

आयुर्वेद के अनुसार व्रत रखने के नियम-

वात- जिन लोगों को वात दोष (गाठों में दर्द, गाठों में सूजन और जोड़ों में दर्द या हड्डियां कमजोर हो जाना आदि) है। उन लोगों को बहुत संभल कर व्रत रखना चाहिए। वात दोष वालों को सप्ताह में तीन दिन से अधिक व्रत नही रखना चाहिए। क्योंकि ऐसे लोगों के व्रत रखने से उनमें वात दोष बढ़ सकता है, शरीर के अंगो में कमजोरी आ सकती है।

कफ- कफ दोष वालों को व्रत रखने में कोई परहेज नही है, ऐसे लोग ज्यादा दिन तक उपवास रख सकते हैं। व्रत रखने से उनमें ध्यान केन्द्रित करने की क्षमता बढ़ जाती है और किसी भी काम को बेहतर तरीके से कर पाते हैं। कफ दोष वाले व्रत रखने से अच्छा महसूस करते हैं।

पित्त- जिन लोगों को पित्त दोष (शरीर में बनने वाले हार्मोन और एंजाइयम को नियंत्रित करता है और शरीर का तापमान व पाचक अग्नि पित्त से नियंत्रित होती हैं) है। ऐसे लोगों को सप्ताह में चार दिन से ज्यादा व्रत नही रखना चाहिए। चार दिनों से ज्यादा व्रत रखने से अग्नि तत्व बढने लगता है जिससे गुस्सा आने के साथ-साथ चक्कर आने की समस्या भी हो जाती है। अगर आपको ऐसा महसूस हो तो तुरंत व्रत रखना बंद कर दें।

कब उपवास रखना बंद करें-

व्रत के दौरान हमारे पाचन तंत्र को आराम मिलता है, इसलिए पाचन तंत्र पर किसी भी तरीके का दवाब न पड़े इसका ख्याल जरुर रखें। ऐसे में अगर आपको इनमें से कोई लक्षण दिखे तो व्रत रखना बंद कर दें।

छाती और पेट दर्द-

व्रत रखने से पहले ही आपको तय कर लेना चाहिए कि आपको उपवास रखना है कि नही यानी अगर आपका स्वास्थ्य सही नही है या आप शरीरिक रुप से व्रत रखने के लिए तैयार नही हैं तो व्रत न रखना ही सही रहेगा। व्रत रखने से पहले या व्रत रखने के दौरान यदि आप छाती, पेट या के आसपास कोई दर्द महसूस करते हैं तो व्रत रखना तुरंत बंद कर दें।

डायरिया-

डायरिया को दस्त के रुप में भी जाना जाता है, इसे पेट का फ्लू भी कहते हैं। यह एक तरह का पेट का संक्रमण भी है जो गलत खान-पान व शरीर में पानी की कमी के कारण हो जाता है। व्रत रखने के दौरान आपके द्वारा लिए गए फलों या भोजन की वजह से भी डायरिया हो सकता है तो व्रत रखने के दौरान इन सब लक्षणों को ध्यान में रखकर ही व्रत रखें।

पेट में दर्द या जलन-

अगर आपको कोई पेट की समस्या- जैसे पेट में दर्द, जलन या गैस्ट्राइटिस की समस्या महसूस हो तो तुरंत व्रत रखना बंद कर दें। यदि आप फिर भी व्रत रखना चाहते है तो पहले से ही उचित सावधानी सुनिशिचत कर लें।

उल्टी या बेहोशी-

व्रत के दौरान अगर आपको उल्टी, चक्कर या बेहाश होने की स्थिति महसूस हो रही है तो इसका सीधा सा मतलब है कि आपके शरीर को ग्लुकोज की जरुरत है। ऐसे में आप तुरंत व्रत तोड़ सकते हैं और यदि आप व्रत नही तोड़ना चाहते हैं तो ज्यादा से ज्यादा फलों को जूस लें, क्योंकि फलों में अदिक मात्रा में सुक्रोज पाया जाता है जो कि ग्लुकोज की कमी को पूरा करता है।

 

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